॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान॥
अर्थ: भगवान शिव की स्तुति करने से पहले गणेश जी का स्मरण किया गया है, क्योंकि वे सभी शुभ कार्यों में प्रथम पूज्य हैं। अयोध्यादास कहते हैं कि शिव जी अभय और वरदान प्रदान करें।
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
अर्थ: हे पार्वतीपति (गिरिजा पति), आप दीनों पर दया करने वाले हैं और हमेशा संतों की रक्षा करते हैं।
भाल चन्द्रमा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नागफनी के॥
अर्थ: आपके मस्तक पर चंद्रमा बहुत सुंदर दिखता है और आपके कानों में कुंडल तथा गर्दन में नाग का हार सुशोभित होता है।
अंग गौर शिर गंग बहाये।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
अर्थ: आपके शरीर का रंग गोरा है और सिर पर गंगा की धारा बह रही है। आपके गले में मुण्डमाला (खोपड़ी की माला) है और शरीर पर भस्म (राख) लगा हुआ है।
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।
छवि को देखि नाग मन मोहे॥
अर्थ: आप बाघ की खाल पहनते हैं और आपकी छवि इतनी मोहक है कि नाग भी मोहित हो जाते हैं।
मैना मातु की हवे दुलारी।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
अर्थ: आप मैना (पार्वती) माता के दुलारे हैं, और आपके बाएं अंग में पार्वती जी की छवि अद्वितीय है।
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
अर्थ: आपके हाथ में त्रिशूल बहुत ही भारी छवि प्रस्तुत करता है और यह सदा शत्रुओं का नाश करता है।
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।
सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
अर्थ: आपके साथ नंदी और गणेश ऐसे शोभा पाते हैं जैसे समुद्र में कमल खिलता है।
कार्तिक श्याम और गणराऊ।
या छवि को कहि जात न काऊ॥
अर्थ: कार्तिकेय, श्याम और गणेश की छवि इतनी अद्वितीय है कि उसे शब्दों में बयां करना असंभव है।
देवन जबहीं जाय पुकारा।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
अर्थ: जब भी देवता आपको पुकारते हैं, आप तुरंत उनकी पीड़ा का निवारण करते हैं।
किया उपद्रव तारक भारी।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
अर्थ: तारकासुर ने भारी उत्पात मचाया, तब सभी देवताओं ने मिलकर आपकी स्तुति की।
तुरत षडानन आप पठायउ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
अर्थ: आपने तुरंत षडानन (कार्तिकेय) को भेजा, जिन्होंने पलक झपकते ही तारकासुर का वध कर दिया।
आप जलंधर असुर संहारा।
सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
अर्थ: आपने जलंधर असुर का वध किया, और आपका यश पूरे संसार में विदित है।
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
अर्थ: आपने त्रिपुरासुर के साथ भीषण युद्ध किया और सभी पर कृपा करके उन्हें बचाया।
किया तपहिं भागीरथ भारी।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
अर्थ: आपने भागीरथ के तप का मान रखा और उनकी पुरानी प्रतिज्ञा को पूरा किया।
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं।
सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
अर्थ: दान देने में आप जैसा कोई नहीं है, और आपके भक्त सदैव आपकी स्तुति करते हैं।
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
अर्थ: वेदों ने भी आपकी महिमा का गुणगान किया है, लेकिन वे आपकी अनंत और अज्ञेय महिमा का रहस्य नहीं जान पाए।
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला।
जरत सुरासुर भए विहाला॥
अर्थ: समुद्र मंथन के समय विष की ज्वाला प्रकट हुई, जिससे देवता और असुर दोनों विचलित हो गए।
कीन्ही दया तहं करी सहाई।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
अर्थ: आपने दया दिखाते हुए उस विष को पी लिया और आपका नाम नीलकण्ठ पड़ गया।
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
अर्थ: जब श्रीराम ने आपकी पूजा की, तब आपने उन्हें लंका विजय के बाद विभीषण को सौंपने का आशीर्वाद दिया।
सहस कमल में हो रहे धारी।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
अर्थ: जब श्रीराम ने सहस्र कमल से आपकी पूजा की, तब आपने उनकी परीक्षा ली।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई।
कमल नयन पूजन चहं सोई॥
अर्थ: जब एक कमल कम पड़ गया, तब श्रीराम ने अपने कमल जैसे नेत्र से आपकी पूजा करने का निश्चय किया।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
अर्थ: श्रीराम की कठिन भक्ति देखकर आप प्रसन्न हो गए और उन्हें इच्छित वरदान दिया।
जय जय जय अनन्त अविनाशी।
करत कृपा सब के घटवासी॥
अर्थ: हे अनंत, अविनाशी भगवान शिव! आप सबके हृदय में विराजमान हैं और कृपा करते हैं।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
अर्थ: दुष्ट मुझे रोज़ सताते हैं, मैं परेशान होकर भटकता रहता हूँ, मुझे चैन नहीं आता।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।
येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
अर्थ: हे प्रभु! मैं त्राहि-त्राहि कर पुकारता हूँ, इस समय कृपया मुझे संकट से उबारें।
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।
संकट से मोहि आन उबारो॥
अर्थ: हे प्रभु! अपने त्रिशूल से मेरे शत्रुओं का नाश करें और मुझे संकट से मुक्त करें।
मात-पिता भ्राता सब होई।
संकट में पूछत नहिं कोई॥
अर्थ: संकट के समय माँ, पिता, भाई और सभी परिजन भी साथ नहीं देते।
स्वामी एक है आस तुम्हारी।
आय हरहु मम संकट भारी॥
अर्थ: हे प्रभु! आप ही मेरी एकमात्र आशा हैं। कृपया आकर मेरे भारी संकट को दूर करें।
धन निर्धन को देत सदा हीं।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अर्थ: आप सदैव धनवान और निर्धन सभी को वरदान देते हैं, जो भी आपसे कुछ माँगता है उसे फल अवश्य मिलता है।
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
अर्थ: हे प्रभु! हम किस प्रकार आपकी स्तुति करें? कृपया हमारी भूलों को क्षमा करें।
शंकर हो संकट के नाशन।
मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
अर्थ: हे शंकर! आप सभी संकटों का नाश करने वाले हैं और हर शुभ कार्य के रक्षक हैं।
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।
शारद नारद शीश नवावैं॥
अर्थ: योगी, यति और मुनि आपके ध्यान में लीन रहते हैं, और सरस्वती और नारद आपके चरणों में सिर झुकाते हैं।
नमो नमो जय नमः शिवाय।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
अर्थ: हे शिवजी, आपको बारंबार नमस्कार है। देवता और ब्रह्मा भी आपकी महिमा को पूरी तरह नहीं जान सकते।
जो यह पाठ करे मन लाई।
ता पर होत है शम्भु सहाई॥
अर्थ: जो व्यक्ति मन लगाकर इस शिव चालीसा का पाठ करता है, उस पर भगवान शिव सदैव कृपा करते हैं।
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी।
पाठ करे सो पावन हारी॥
अर्थ: जो भी कर्जदार व्यक्ति इस चालीसा का पाठ करता है, उसे उसके सभी ऋणों से मुक्ति मिलती है।
पुत्र हीन कर इच्छा जोई।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
अर्थ: जो पुत्रहीन व्यक्ति पुत्र की इच्छा करता है, उसे शिवजी की कृपा से पुत्र की प्राप्ति होती है।
पण्डित त्रयोदशी को लावे।
ध्यान पूर्वक होम करावे॥
अर्थ: जो पण्डित त्रयोदशी के दिन शिवजी का ध्यान करके हवन कराता है, वह पवित्र हो जाता है।
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा।
ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
अर्थ: जो व्यक्ति हमेशा त्रयोदशी का व्रत करता है, उसके शरीर में कभी कोई कष्ट नहीं होता।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
अर्थ: जो व्यक्ति शिवजी के सम्मुख धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाकर इस पाठ का पाठ करता है, उसके सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
जन्म जन्म के पाप नसावे।
अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
अर्थ: जो व्यक्ति इस पाठ का विधिपूर्वक पाठ करता है, उसके सभी जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में वह शिवलोक प्राप्त करता है।
**कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
अर्थ: अयोध्यादास कहते हैं, हे शिवजी! कृपया हमारी सभी पीड़ाओं को दूर करें।
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही,
पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना,
पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु,
संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि,
पूर्ण कीन कल्याण॥
अर्थ: जो भी व्यक्ति नियमपूर्वक प्रतिदिन इस चालीसा का पाठ करता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ शिवजी पूरी करते हैं।