शिव चालीसा भगवान शिव की स्तुति में एक भक्तिमय रचना है, जिसमें शिव के विभिन्न रूपों, गुणों, और कार्यों का वर्णन किया गया है। यह चालीसा भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और भक्ति को प्रकट करने का एक माध्यम है, जो भक्त को संकटों से मुक्त कर सकता है। यहां कुछ और महत्वपूर्ण बातें दी जा रही हैं जो इस चालीसा से संबंधित हैं:

  1. शिव का स्वरूप: शिव को त्रिनेत्रधारी कहा जाता है, जो अज्ञान को नष्ट करने वाले हैं। उनके तीसरे नेत्र से जो अग्नि निकलती है, वह सभी बुराइयों को समाप्त कर देती है। इस चालीसा में शिव के आभूषणों और वस्त्रों का वर्णन किया गया है—वे गले में नाग, सिर पर गंगा और शरीर पर भस्म धारण करते हैं। उनका बाघम्बर धारण करना उनकी वीरता और शौर्य का प्रतीक है।
  2. धार्मिक महत्व: शिव चालीसा का पाठ भक्तों के लिए मानसिक शांति, संकटों से मुक्ति, और जीवन में सुख-समृद्धि लाने वाला माना जाता है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है, जो व्यक्ति को जीवन की कठिनाइयों से बचाती है।
  3. शिव की कृपा: चालीसा में भगवान शिव के उन गुणों का वर्णन किया गया है, जिनसे उनके भक्तों को लाभ होता है। शिव को “दीन दयाला” कहा गया है, अर्थात वे हमेशा दीन-दुखियों की सहायता करते हैं। उनकी कृपा से भक्त का जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो सकता है और मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
  4. शिव की भक्ति का मार्ग: इस चालीसा के माध्यम से यह संदेश मिलता है कि भगवान शिव की भक्ति करने वाले व्यक्ति को न केवल सांसारिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है, बल्कि उसे आत्मिक शांति और आनंद की प्राप्ति होती है। भक्त शिव के ध्यान और साधना से उन तक पहुंच सकता है।
  5. भगवान शिव के गुण: शिव को “संतों का प्रतिपालक” कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे सच्चे संतों और भक्तों की हर स्थिति में रक्षा करते हैं। शिव न केवल ध्यान के अधिपति हैं बल्कि वह भूत-प्रेत, यमराज और अन्य दुष्ट शक्तियों से भी रक्षा करने वाले हैं।
  6. शिव के निवास का वर्णन: चालीसा में कैलाश पर्वत का भी वर्णन है, जो भगवान शिव का निवास स्थान है। यह स्थान आध्यात्मिक रूप से पवित्र और शांतिपूर्ण माना जाता है, जहाँ गंगा की पवित्र धारा बहती है, और संत महात्मा भगवान शिव के दर्शन के लिए वहाँ जाते हैं।
  7. भक्ति का फल: इस चालीसा के अंत में भक्तों को यह आश्वासन दिया गया है कि जो कोई शिव की भक्ति पूरी निष्ठा से करता है, उसे जीवन के सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और उसे भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
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शिव चालीसा

दोहा: श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

चौपाई: जय गिरिजा पति दीन दयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहै कयारी।
कानन कुंडल नाग फन भारी॥

अंग गौर शिर गंग बहाये।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहै।
छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

मत्तगज वाहन सोहै प्यारा।
तुम्हको देखत जम का मारा॥
भूत प्रेत से तुम रखवारे।
आपन जनन सदा सहारे॥

कैलाश पर्वत पर तुम्हरी धामा।
गंगा बहै जहं संतन मामा॥
तुम्हरे भक्त व्रत धरि तारे।
तुम बिन संकट कौन निस्तारे॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जनम-मरण ताहि छुट जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारा।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारा॥

शंकर हो संकट के नाशन।
मंगल कारण विग्रह विदर्शन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगायें।
शंकर संग लीन हो जायें॥

दोहा: त्रिभुवन में पूज्य शिव, शंकर नाम तुम्हार।
अयोध्यादास विनय कर, करत सदा उद्धार॥


शिव चालीसा का अर्थ:

दोहा:
श्री गणेश और पार्वती के पुत्र, जो कि कल्याण और शुभ के प्रतीक हैं, अयोध्यादास भगवान शिव से विनती करते हैं कि उन्हें अभय (निडर) वरदान दें।

चौपाई: हे गिरिजा के पति, आप दीनों पर दया करने वाले हैं और हमेशा संतों की रक्षा करते हैं।
आपके मस्तक पर चंद्रमा शोभायमान है, और आपके कानों में कुंडल और गले में भारी नाग है।

आपका शरीर गौर वर्ण है और आपके सिर पर गंगा जी प्रवाहित हो रही हैं।
आपने मुंडमाल धारण की हुई है और शरीर पर राख लगाए हुए हैं।

आपके वस्त्र बाघ की खाल है और यह देख मुनि भी मोहित हो जाते हैं।
आपका वाहन मत्तगज (मतवाला हाथी) है, जो सभी को प्रिय है।

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आपके दर्शन से यमराज का भी भय समाप्त हो जाता है।
आप भूत-प्रेतों से रक्षा करते हैं और अपने भक्तों का सदा सहारा बने रहते हैं।

आपका धाम कैलाश पर्वत पर है, जहाँ गंगा बहती है और संतों का वास है।
आपके भक्त जो व्रत करते हैं, वे हमेशा तर जाते हैं, आपके बिना कोई संकट दूर नहीं कर सकता।

जो मनुष्य एकाग्र मन से आपकी उपासना करता है, उसका जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है।
योगी, देवता और मुनि सब यही पुकारते हैं कि शक्ति के बिना योग संभव नहीं है।

हे शंकर, आप संकटों का नाश करने वाले हैं और कल्याणकारी हैं।
योगी, यति और मुनि ध्यान में लीन होकर आपकी उपासना करते हैं।

दोहा:
आप त्रिलोक में पूज्यनीय हैं और आपका नाम शंकर है। अयोध्यादास आपकी विनती करता है कि आप सदा सबका उद्धार करते रहें।