ऊं डिं डिं डिंकत डिम्ब डिम्ब डमरु,पाणौ सदा यस्य वै ।
फुं फुं फुंकत सर्पजाल हृदयं,घं घं च घण्टा रवम् ॥
वं वं वंकत वम्ब वम्ब वहनं,कारुण्य पुण्यात् परम्॥
भं भं भंकत भम्ब भम्ब नयनं,ध्यायेत् शिवं शंकरम्॥
यावत् तोय धरा धरा धर धरा ,धारा धरा भूधरा।।
यावत् चारू सुचारू चारू चमरं, चामीकरं चामरं।।
यावत् रावण राम राम रमणं, रामायणे श्रुयताम्।
तावत् भोग विभोग भोगमतुलम् यो गायते नित्यस:॥
यस्याग्रे द्राट द्राट द्रुट द्रुट ममलं ,टंट टंट टंटटम् ।
तैलं तैलं तु तैलं खुखु खुखु खुखुमं ,खंख खंख सखंखम्॥
डंस डंस डुडंस डुहि चकितं, भूपकं भूय नालम्।।
ध्यायस्ते विप्रगाहे सवसति सवलः पातु वः चंद्रचूडः॥
गात्रं भस्मसितं सितं च हसितं हस्ते कपालं सितम्।।
खट्वांग च सितं सितश्च भृषभः, कर्णेसिते कुण्डले।।
गंगाफनेसिता जटापशुपतेश्चनद्रः सितो मुर्धनी॥
सो5यं सर्वसितो ददातु विभवं, पापक्षयं सर्वदा॥
ऊं डिं डिं डिंकत डिम्ब डिम्ब डमरु मंत्र का महत्व
यह मंत्र भगवान शिव की आराधना और ध्यान के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है। इस मंत्र के प्रत्येक शब्द और ध्वनि में गहरे आध्यात्मिक अर्थ छिपे हुए हैं, जो भक्त को शिव के गुणों और शक्तियों से जोड़ते हैं। इस मंत्र का सही उच्चारण और उसका अर्थ समझना साधक को आंतरिक शांति और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है।
मंत्र की प्रत्येक पंक्ति का विस्तार
ऊं डिं डिं डिंकत डिम्ब डिम्ब डमरु, पाणौ सदा यस्य वै
इस पंक्ति में भगवान शिव के डमरु का वर्णन है, जो उनके हाथों में हमेशा होता है। डमरु भगवान शिव का प्रमुख प्रतीक है, जो सृजन और संहार दोनों का द्योतक है।
- डिं डिं डिंकत डिम्ब डिम्ब: यह ध्वनि शिव के डमरु से निकलती है। यह ध्वनि ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है, जो सृजन की प्रक्रिया का आरंभ करती है।
- पाणौ सदा यस्य वै: इसका अर्थ है कि भगवान शिव के हाथों में हमेशा डमरु होता है, जो अनंत ऊर्जा का स्रोत है।
फुं फुं फुंकत सर्पजाल हृदयं, घं घं च घण्टा रवम्
इस पंक्ति में शिव के सर्प और घण्टा का उल्लेख है। शिव के गले में हमेशा सर्प लिपटे रहते हैं और उनके मंदिरों में घंटों का बजना सुनाई देता है।
- फुं फुं फुंकत: यह ध्वनि सर्पों के फुफकारने का प्रतीक है, जो शिव के गले में लिपटे रहते हैं। यह सर्प शक्ति और भय दोनों का प्रतीक है।
- सर्पजाल हृदयं: शिव का हृदय सर्पजाल से घिरा हुआ है, जो उनके विवेक और सामर्थ्य को दर्शाता है।
- घं घं घण्टा रवम्: घण्टा बजने की ध्वनि उनके मंदिरों में सुनाई देती है, जो ध्यान और पूजा के दौरान एकाग्रता और जागरूकता को बढ़ाता है।
वं वं वंकत वम्ब वम्ब वहनं, कारुण्य पुण्यात् परम्
यह पंक्ति भगवान शिव के करुणा और उनके वैभव का वर्णन करती है। वे समस्त संसार के प्रति करुणा का भाव रखते हैं और अपने भक्तों को पुण्य का मार्ग दिखाते हैं।
- वं वं वंकत: यह ध्वनि शिव की शक्ति और करुणा का प्रतीक है, जो उन्हें सभी के प्रति दयालु बनाती है।
- वम्ब वम्ब वहनं: इसका तात्पर्य है कि शिव समस्त संसार को अपने कंधों पर वहन करते हैं और उनके पुण्य कर्मों से संसार संचालित होता है।
- कारुण्य पुण्यात् परम्: शिव की करुणा और उनका पुण्य अतुलनीय है। वे अपने भक्तों के सभी कष्ट हर लेते हैं और उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं।
भं भं भंकत भम्ब भम्ब नयनं, ध्यायेत् शिवं शंकरम्
इस पंक्ति में शिव के ध्यान का महत्व बताया गया है। उनकी आँखें गहरी और शांत हैं, जो सृजन और विनाश दोनों का प्रतीक हैं।
- भं भं भंकत: यह ध्वनि शिव के गहरे और स्थिर नयनों का प्रतीक है, जो ध्यान की स्थिति में हैं।
- भम्ब भम्ब नयनं: शिव की आँखें शांति और ध्यान की गहराई का प्रतीक हैं। उनके नयनों में संसार के रहस्यों का संचार होता है।
- ध्यायेत् शिवं शंकरम्: इसका तात्पर्य है कि शिव का ध्यान करते समय, साधक उनकी ऊर्जा और आशीर्वाद को प्राप्त करता है। शिव का ध्यान व्यक्ति को जीवन के सभी संकटों से उबारता है।
यावत् तोय धरा धरा धर धरा ,धारा धरा भूधरा
इस पंक्ति में शिव को संसार की आधारशिला के रूप में वर्णित किया गया है।
- यावत् तोय धरा: जब तक यह पृथ्वी और जल प्रवाह हैं, तब तक शिव की शक्ति इस संसार का संचालन करती है।
- धरा धरा भूधरा: शिव ही इस धरती के रक्षक और पालक हैं। वे समस्त प्रकृति के संरक्षक हैं और उनका आशीर्वाद पृथ्वी की समृद्धि को बनाए रखता है।
यावत् चारू सुचारू चारू चमरं, चामीकरं चामरं
यह पंक्ति शिव के वैभव और शक्ति का वर्णन करती है। शिव का वैभव उनके भक्तों के जीवन में समृद्धि और शांति लाता है।
- यावत् चारू सुचारू: शिव का वैभव और उनकी उपस्थिति सर्वत्र व्याप्त है। उनके सानिध्य में हर कार्य सुचारू रूप से चलता है।
- चारू चमरं: शिव की महिमा और वैभव से संसार की प्रत्येक वस्तु प्रकाशित होती है।
- चामीकरं चामरं: यह शिव के वैभव का प्रतीक है, जो उनके मंदिरों में दर्शाया जाता है। चामर भगवान की सेवा में उपयोग होता है और यह उनकी पूजा का एक अभिन्न अंग है।
यावत् रावण राम राम रमणं, रामायणे श्रुयताम्
यह पंक्ति रामायण के प्रसंगों को दर्शाती है, जिसमें रावण और राम का उल्लेख है।
- यावत् रावण राम: जब तक राम और रावण की कथा संसार में जीवित है, तब तक भगवान शिव का यश भी जीवित रहेगा।
- राम रमणं: राम के प्रति शिव की भक्ति और उनका प्रेम अपरम्पार है। शिव राम के अद्वितीय भक्त माने जाते हैं।
- रामायणे श्रुयताम्: रामायण का पाठ और उसका श्रवण भक्तों के लिए मंगलकारी है। इसमें शिव की भी महिमा गायी गई है।
तावत् भोग विभोग भोगमतुलम् यो गायते नित्यस:
इस पंक्ति में शिव की महिमा का गुणगान करने की प्रेरणा दी गई है।
- तावत् भोग विभोग: शिव की उपासना और उनकी महिमा का गायन करने से जीवन में विभोग और भोग प्राप्त होते हैं।
- भोगमतुलम्: इसका तात्पर्य है कि शिव की कृपा से जो भोग प्राप्त होता है, वह अतुलनीय है।
- यो गायते नित्यस:: शिव की महिमा का नित्य गायन करने वाला व्यक्ति समस्त सांसारिक कष्टों से मुक्त हो जाता है और शिव की अनुकंपा प्राप्त करता है।
यस्याग्रे द्राट द्राट द्रुट द्रुट ममलं ,टंट टंट टंटटम्
इस पंक्ति में शिव की ध्वनियों का वर्णन किया गया है, जो उनके साथ चलने वाली दिव्य ध्वनियाँ हैं।
- यस्याग्रे द्राट द्राट: यह ध्वनि शिव के कदमों के आगे चलने वाली ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक है।
- द्रुट द्रुट ममलं: यह शिव के चलने की गति और उनकी दिव्य उपस्थिति का प्रतीक है, जो ब्रह्मांड में प्रत्येक स्थान पर विद्यमान है।
- टंट टंट टंटटम्: यह शिव के युद्ध कौशल और उनकी रणभेरी की ध्वनि है, जो उनके क्रोध और शक्ति का प्रतीक है।
तैलं तैलं तु तैलं खुखु खुखु खुखुमं, खंख खंख सखंखम्
इस पंक्ति में शिव की उपासना में उपयोग होने वाले तैल और शंख का वर्णन है। शिव की पूजा में तेल का अभिषेक और शंख की ध्वनि विशेष महत्व रखती है।
- तैलं तैलं तु तैलं: इसका अर्थ है कि शिव की पूजा में लगातार तैल का अभिषेक किया जाता है। यह अभिषेक शिव की ऊर्जा और शांति का प्रतीक है।
- खुखु खुखु खुखुमं: यह शंख की ध्वनि है, जो पूजा के समय शिव की शक्ति को जाग्रत करती है। शंख बजाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मकता का संचार होता है।
- खंख खंख सखंखम्: यह पंक्ति भी शंख की ध्वनि की महत्ता को दर्शाती है। शंख की आवाज ब्रह्मांडीय ध्वनि का प्रतीक मानी जाती है, जो शिव की उपस्थिति का संकेत देती है।
डंस डंस डुडंस डुहि चकितं, भूपकं भूय नालम्
इस पंक्ति में भगवान शिव की ताकत और प्रभाव का वर्णन किया गया है, जो संपूर्ण सृष्टि को प्रभावित करता है।
- डंस डंस डुडंस: यह ध्वनि शिव के प्रचंड रूप और उनकी क्रोधित मुद्रा का संकेत देती है, जब वे तांडव करते हैं। यह ध्वनि शिव के नृत्य की गति और ऊर्जा का प्रतीक है।
- चकितं: इसका अर्थ है कि शिव की प्रचंड शक्ति देखकर पूरी सृष्टि चकित हो जाती है। उनकी अपार ऊर्जा को समझ पाना किसी के बस की बात नहीं।
- भूपकं भूय नालम्: यह बताता है कि शिव की शक्ति ने पृथ्वी और आकाश दोनों को प्रभावित किया है। वे समस्त ब्रह्मांड के स्वामी हैं और उनकी शक्ति का कोई मोल नहीं।
ध्यायस्ते विप्रगाहे सवसति सवलः पातु वः चंद्रचूडः
इस पंक्ति में शिव के ध्यान और उनके चंद्रचूड़ स्वरूप का वर्णन किया गया है। शिव के सिर पर चंद्रमा का होना शांति और सौम्यता का प्रतीक है।
- ध्यायस्ते विप्रगाहे: इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति ध्यान की गहराई में जाकर शिव का स्मरण करता है, वह आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करता है।
- सवसति सवलः: इसका तात्पर्य है कि शिव की उपासना करने वाले व्यक्ति को सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है और वह बलशाली बनता है।
- पातु वः चंद्रचूडः: चंद्रचूड़ यानी शिव जिनके मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित है। यह चंद्रमा शिव की शीतलता और शांति का प्रतीक है, जो उनकी उग्रता के बावजूद संतुलन बनाए रखता है।
गात्रं भस्मसितं सितं च हसितं हस्ते कपालं सितम्
यह पंक्ति शिव के शरीर पर लगाए गए भस्म और उनके हाथ में रखे कपाल का वर्णन करती है। यह शिव के वैराग्य और उनके मृत्युलोक के स्वामी होने का संकेत देती है।
- गात्रं भस्मसितं: शिव का शरीर भस्म से ढका हुआ है, जो उनके वैराग्य का प्रतीक है। यह भस्म जीवन की नश्वरता और मोक्ष की दिशा में बढ़ने का संकेत देती है।
- सितं च हसितं: इसका तात्पर्य है कि शिव का रूप शांत और सौम्य है, भले ही वे मृत्यु के देवता हैं।
- हस्ते कपालं सितम्: शिव के हाथ में कपाल (खोपड़ी) है, जो उनके मृत्युलोक के स्वामी होने का प्रतीक है। यह कपाल जीवन और मृत्यु के चक्र को दर्शाता है।
खट्वांग च सितं सितश्च भृषभः, कर्णेसिते कुण्डले
इस पंक्ति में शिव के खट्वांग और भृषभ (बैल) का वर्णन किया गया है। शिव का वाहन नंदी भी उनकी शक्ति और स्थिरता का प्रतीक है।
- खट्वांग च सितं: खट्वांग एक प्रकार का डंडा है, जो शिव के हाथ में होता है। यह डंडा उनकी शक्ति और उनके नियंत्रण का प्रतीक है।
- सितश्च भृषभः: शिव का वाहन भृषभ (नंदी) है, जो शक्ति और स्थिरता का प्रतीक है। नंदी के माध्यम से शिव की आज्ञा संसार में फैलाई जाती है।
- कर्णेसिते कुण्डले: शिव के कानों में कुण्डल (बालियां) हैं, जो उनके सौंदर्य और वैराग्य दोनों का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये कुण्डल उनकी दिव्य शक्ति और संतुलन को दर्शाते हैं।
गंगाफनेसिता जटापशुपतेश्चनद्रः सितो मुर्धनी
इस पंक्ति में शिव के सिर पर विराजमान गंगा और चंद्रमा का वर्णन किया गया है, जो उनके स्वरूप को और भी अलौकिक बनाते हैं।
- गंगाफनेसिता: शिव की जटाओं से गंगा की धारा प्रवाहित होती है। गंगा शिव की करुणा और शुद्धिकरण का प्रतीक है, जो समस्त प्राणियों के पापों को धोने का कार्य करती है।
- जटापशुपतेश्चनद्रः: शिव के सिर पर चंद्रमा विराजमान है। यह चंद्रमा उनके संतुलन और शांतिपूर्ण स्वभाव का प्रतीक है।
- सितो मुर्धनी: शिव का मस्तक शीतल और शांत है, जहां चंद्रमा और गंगा दोनों मिलकर उनकी दैवीय शक्ति को और भी प्रदर्शित करते हैं।
सो5यं सर्वसितो ददातु विभवं, पापक्षयं सर्वदा
अंत में यह पंक्ति शिव की करुणा और पापों के नाश की बात करती है। यह शिव का आशीर्वाद है कि वे अपने भक्तों के समस्त पापों का नाश कर उन्हें विभव (समृद्धि) प्रदान करते हैं।
- सो5यं सर्वसितो: शिव का स्वरूप पूर्णतः श्वेत है, जो पवित्रता और शांति का प्रतीक है।
- ददातु विभवं: शिव अपने भक्तों को विभव यानी समृद्धि और वैभव प्रदान करते हैं। यह समृद्धि भौतिक और आध्यात्मिक दोनों हो सकती है।
- पापक्षयं सर्वदा: शिव अपने भक्तों के समस्त पापों का नाश करते हैं। उनके आशीर्वाद से भक्त जीवन के कष्टों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।
मंत्र की गहनता और आध्यात्मिक अर्थ
यह मंत्र न केवल भगवान शिव की महिमा का वर्णन करता है, बल्कि उनके रूप, गुण और उनके विभिन्न प्रतीकों के गहरे आध्यात्मिक अर्थ को भी उजागर करता है। प्रत्येक पंक्ति में भगवान शिव के विभिन्न पहलुओं को चित्रित किया गया है, जो उन्हें परम योगी, संहारक, सृजनकर्ता, और मोक्षदाता के रूप में स्थापित करते हैं।
शिव के डमरु का प्रतीकात्मक महत्व
भगवान शिव का डमरु केवल एक वाद्य यंत्र नहीं है, बल्कि इसका गहरा दार्शनिक और आध्यात्मिक अर्थ है। डमरु की ध्वनि ब्रह्मांडीय कंपन का प्रतीक है, जिससे सृष्टि की उत्पत्ति मानी जाती है। माना जाता है कि जब शिव अपने तांडव नृत्य में लीन होते हैं, तब डमरु की ध्वनि से सृष्टि का सृजन और संहार होता है।
- डमरु की ध्वनि: इसे ‘नाद ब्रह्म’ कहा जाता है, जो ब्रह्मांड की ऊर्जा का प्रतीक है। डमरु की आवाज से वेदों और अन्य शास्त्रों की उत्पत्ति हुई मानी जाती है।
- अर्धनारीश्वर रूप: शिव का डमरु उनके अर्धनारीश्वर रूप का भी प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें शिव और शक्ति दोनों का संतुलन है। यह सृजन और संहार के बीच संतुलन का प्रतीक है।
शिव के गले में सर्प और उनका प्रतीकात्मक महत्व
शिव के गले में लिपटे हुए सर्प शक्ति, भय और अमरता का प्रतीक हैं। सर्प भगवान शिव की निरंतर जागरूकता और ध्यान की स्थिति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- सर्प और विष: जब समुद्र मंथन हुआ था, तब निकले कालकूट विष को शिव ने ग्रहण किया था। इससे उनका गला नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। यह घटना उनकी करुणा और बलिदान का प्रतीक है।
- सर्प और ऊर्जा: सर्प का कुंडली मारे हुए रूप शिव के भीतर छिपी कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है, जो साधक के भीतर भी सुषुप्त अवस्था में होती है। शिव की उपासना के माध्यम से इस शक्ति को जागृत किया जा सकता है।
शिव के मस्तक पर चंद्रमा
शिव के मस्तक पर विराजमान चंद्रमा शीतलता, शांति और समय का प्रतीक है। चंद्रमा शिव के भीतर के संतुलन का प्रतीक है, जो उनके उग्र तांडव और शांत रूप के बीच संतुलन बनाता है।
- शिव और चंद्रमा: शिव के मस्तक पर चंद्रमा यह दर्शाता है कि वे काल और समय के भी स्वामी हैं। वे अमर हैं और काल की सीमा से परे हैं।
- चंद्रमा का ज्योतिषीय महत्व: चंद्रमा का संबंध मन से है, और शिव का चंद्रमा धारण करना यह इंगित करता है कि वे अपने मन को पूर्ण नियंत्रण में रखते हैं। भक्तों के लिए यह संदेश है कि शिव की आराधना से मन का संतुलन और शांति प्राप्त की जा सकती है।
शिव का त्रिनेत्र
भगवान शिव के तीन नेत्र उनके त्रिकालदर्शी होने का प्रतीक हैं। उनके तीन नेत्रों का संबंध भूत, भविष्य और वर्तमान से है।
- तीसरा नेत्र: शिव का तीसरा नेत्र उनकी दिव्य दृष्टि का प्रतीक है। जब यह नेत्र खुलता है, तो विनाश होता है। यह नेत्र ज्ञान और विवेक का प्रतीक भी है, जो अज्ञान के अंधकार को मिटा देता है।
- अग्नि तत्व: शिव के तीसरे नेत्र से अग्नि की ज्वालाएं निकलती हैं, जो संसार की नकारात्मकता और बुराई को भस्म कर देती हैं। यह नेत्र व्यक्ति के भीतर की कुंठाओं और नकारात्मक विचारों का नाश करता है।
शिव का भस्म और वैराग्य
भगवान शिव का शरीर भस्म से ढका हुआ होता है, जो उनके वैराग्य और मृत्यु पर विजय का प्रतीक है। भस्म जीवन की नश्वरता का प्रतीक है और यह याद दिलाता है कि संसारिक जीवन अस्थायी है।
- भस्म की महत्ता: भस्म शिव के भक्तों द्वारा धारण की जाती है, जो उन्हें शिव की तरह वैरागी बनने की प्रेरणा देती है। यह प्रतीक है कि हर जीवात्मा को अंततः मृत्यु के बाद भस्म में बदलना है।
- वैराग्य और मोक्ष: शिव का भस्म से अलंकृत होना उनके पूर्ण वैराग्य और मोक्ष की अवस्था का संकेत है। वे संसारिक बंधनों से मुक्त हैं और हर प्राणी को उसी दिशा में प्रेरित करते हैं।
शिव का तांडव और संहार का संदेश
शिव तांडव सृष्टि की समाप्ति और पुनः सृजन का प्रतीक है। जब शिव तांडव करते हैं, तो ब्रह्मांड में विनाश होता है और नए सृजन का मार्ग प्रशस्त होता है। यह नृत्य जीवन और मृत्यु के चक्र का प्रतीक है।
- तांडव का अर्थ: तांडव नृत्य के माध्यम से शिव यह सिखाते हैं कि सृजन और विनाश एक ही प्रक्रिया के दो पहलू हैं। जीवन में नकारात्मकता और विनाश आवश्यक हैं ताकि कुछ नया सृजन हो सके।
- रुद्र रूप: तांडव नृत्य में शिव का रौद्र रूप दिखाई देता है, जो संहार और क्रोध का प्रतीक है। परंतु यह क्रोध हमेशा रचनात्मक होता है, जो संसार की बुराइयों का अंत करता है।
शिव के वाहन नंदी
भगवान शिव का वाहन नंदी (बैल) धर्म, शक्ति और स्थिरता का प्रतीक है। नंदी शिव के मंदिरों के द्वारपाल के रूप में भी पूजे जाते हैं।
- नंदी का धैर्य: नंदी की स्थिरता और धैर्य यह दर्शाती है कि शिव की उपासना करने वाले को भी जीवन में धैर्य और संतुलन रखना चाहिए। नंदी शिव के सभी आदेशों का पालन करते हैं, जिससे उनकी भक्ति और समर्पण की महत्ता प्रकट होती है।
- धार्मिक प्रतीक: नंदी धर्म और न्याय का भी प्रतीक हैं। वे शिव के साथ धर्म और सत्य का पालन करने का संदेश देते हैं।
शिव के भक्तों के लिए संदेश
इस मंत्र का अध्ययन और जाप करने से भक्तों को भगवान शिव की अपार कृपा प्राप्त होती है। शिव न केवल संहार के देवता हैं, बल्कि करुणा और कृपा के भी प्रतीक हैं। उनकी उपासना से साधक को निम्नलिखित लाभ प्राप्त हो सकते हैं:
- आध्यात्मिक शांति: शिव के ध्यान और उनके मंत्रों का जाप मानसिक शांति और आंतरिक स्थिरता प्रदान करता है। इससे साधक के मन का संतुलन बना रहता है।
- कष्टों का नाश: शिव की कृपा से जीवन के समस्त कष्ट और बाधाएँ दूर होती हैं। वे अपने भक्तों को आशीर्वाद देकर उनके पापों का क्षय करते हैं।
- मोक्ष की प्राप्ति: शिव का आराधक अंततः मोक्ष प्राप्त करता है, जो जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति का मार्ग है।
भगवान शिव की महिमा का गान और उनका ध्यान साधक को जीवन की हर परेशानी से मुक्ति दिलाता है और अंततः उसे आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।