शिव तांडव स्तोत्रम् – परिचय
शिव तांडव स्तोत्रम् भगवान शिव की स्तुति में रचा गया एक अद्भुत स्तोत्र है, जिसे रावण द्वारा गाया गया माना जाता है। इस स्तोत्र में भगवान शिव की महिमा का वर्णन है और यह उनके उग्र और अनंत रूप का परिचायक है। इस स्तोत्र का पाठ करने से मानसिक शांति, शक्ति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
शिव तांडव स्तोत्रम् का इतिहास
रावण और शिव तांडव स्तोत्रम् का संबंध
पुराणों के अनुसार, रावण ने एक बार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास किया था। इस प्रयास में असफल होने पर रावण ने भगवान शिव की स्तुति में शिव तांडव स्तोत्रम् का सृजन किया। यह स्तोत्र रावण की भगवान शिव के प्रति गहरी भक्ति और उनके उग्र रूप की सराहना का प्रतीक है।
शिव तांडव स्तोत्रम् के पाठ के लाभ
मानसिक शांति
शिव तांडव स्तोत्रम् का नियमित पाठ करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है। यह स्तोत्र व्यक्ति के मन और आत्मा को शुद्ध करता है, जिससे विचारों में स्थिरता और मन में शांति का अनुभव होता है।
साहस और शक्ति की प्राप्ति
भगवान शिव को त्रिनेत्रधारी और संहारकर्ता के रूप में जाना जाता है। शिव तांडव स्तोत्रम् का पाठ व्यक्ति को साहस और शक्ति प्रदान करता है, जिससे वह जीवन के कठिनाईयों का सामना कर पाता है।
सौभाग्य और समृद्धि
यह स्तोत्र भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का सबसे सशक्त माध्यम है। जो व्यक्ति इसे श्रद्धा से पढ़ता है, उसे सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह सभी बाधाओं को दूर कर सुख और संपन्नता का मार्ग प्रशस्त करता है।
शिव तांडव स्तोत्रम् का पाठ
स्तोत्रम् के श्लोक
शिव तांडव स्तोत्रम् कुल 15 श्लोकों का संग्रह है, जिनमें भगवान शिव के विभिन्न रूपों और शक्तियों का वर्णन किया गया है। यहाँ इस स्तोत्र के श्लोक दिए गए हैं:
शिव तांडव स्तोत्रम् के श्लोक
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥
धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥
जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥
ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम् ।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥
कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥
नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥
प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥
अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् ।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥
कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम्॥13॥
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥15॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥
शिव तांडव स्तोत्रम् के पाठ की विधि
पाठ का समय और स्थान
शिव तांडव स्तोत्रम् का पाठ प्रातःकाल या सायं काल में किया जा सकता है। यह ध्यान रखना चाहिए कि पाठ के समय व्यक्ति का मन शांत हो और वह पूर्ण रूप से भगवान शिव के ध्यान में लीन हो। पाठ करने के लिए शांत स्थान का चयन करें, जहाँ किसी भी प्रकार का शोर या व्यवधान न हो।
पाठ के नियम
- पाठ करते समय स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पाठ से पहले शिवलिंग पर जल और बिल्वपत्र चढ़ाएं।
- शांत मन से भगवान शिव का ध्यान करें और स्तोत्र का उच्चारण करें।
निष्कर्ष
शिव तांडव स्तोत्रम् भगवान शिव की महिमा का अद्वितीय स्तोत्र है। इसका पाठ करने से मानसिक शांति, शक्ति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। शिव तांडव स्तोत्रम् हमें भगवान शिव के उग्र रूप के साथ-साथ उनकी करुणा और कृपा का भी बोध कराता है। यह स्तोत्र प्रत्येक शिव भक्त के लिए अति महत्त्वपूर्ण और पवित्र है।